आर्य समाज के संस्थापक और हिन्दू धर्म के महान रक्षक और उधारक् स्वामी
दयानंद सरस्वती (१८२४ -१८८३ ई० ) भारत की एक महान बिभूति थे | उन्होंने हिन्दुओ में
व्याप्त धार्मिक अंधविश्वास ,आडम्बरो, कुरीतियों आदि को दूर किया | उन्होंने
;स्वराज्य का नारा लगाकर भारतीयो में रास्ट्रीय चेतना का शंखनाद किया | उन्होंने
भारतीयो को उनके प्राचीन गौरव का स्मरण कराया और उनके विलुप्त स्वाभिमान को जाग्रत
करने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी | स्वामी दयानंद ने सुप्रसिद्ध ग्रन्थ सत्यार्थ
प्रकाश की रचना की ,गैर हिंदी भाषी होते हुए भी उन्होंने अपने इस ग्रन्थ को हिंदी
में लिखा और सर्व प्रथम घोषणा की कि भविष्य में भारत की रास्त्र भाषा हिंदी ही होगी
|१९७५ ई० में मुंबई में
स्थापित आर्य समाज की शाखाए आज लगभग सभी नगरो में हैं | स्वामी दयानंद आधुनिक भारत
के महान संत ,महापुरुष ,महान धर्म व समाज सुधारक तथा सच्चे देश भक्त थे | उन्होंने
हिन्दू समाज की कुरीतियों का प्रबल बिरोध किया ,बिधवा पुनविर्वाह तथा स्त्री शिक्षा
को प्रोत्साहन दिया तथा भारतीयों को स्वराज्य के महत्त्व से
परिचित कराया | इनके जीवन का एक महत्वपूर्ण प्रेरक प्रसंग निम्न प्रकार है __एक बार
जब स्वामी दयानंद जोधपुर –नरेश के यहाँ आतिथ्य ग्रहण
किए हुए थे ,तब स्वामीजी ने जोधपुर नरेश को एक वेश्या के साथ देख लिया | इस पर
उन्होंने राजा और वेश्या दोनों को बहुत बुरा –भला कहा |राजा तो लज्जित होकर चुप रह गए ,लेकिन वेश्या ने अपने अपमान का
बदला लेने का निश्चय कर लिया | उसने स्वामी जी के रसोईये से मिलकर ,उन्हें दूध मे
विष और पिसा हुआ कांच मिलाकर पिला दिया | स्वामी जी को शीघ्र ही इस बात का पता चल
गया | उन्होंने रसोईये को कुछ रुपये देते हुए कहा कि__ मेरा तो अन्त समय निकट आ गया है,लेकिन तुम इन
रुपयों को लेकर भाग जाओ ,नही तो तुम पकडे जाओगे | रसोईया स्वामीजी की इस उदारता पर
फूट-फूट कर रोने लगा और अपनी करनी पर पश्चाताप करने लगा |
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