राजपूत काल की विशिष्टता विशाल संख्या में राजपूत शासकों द्वारा बनवाए गए
मन्दिर है , जो कि भारत के बिभ्निन भागो में बिस्तृत है | राजपूत काल में बने
प्रमुख मन्दिरों में से एक खजुराहो का मन्दिर समूह है| झाँसी के समीप स्थित खजुराहो
के मन्दिरों का निर्माण चंदेल शासको के समय में हुआ था | यहाँ पर लगभग ३० मन्दिर
है,जो कला की द्र्स्टी से उत्कर्ष कोटि के है | खजुराहो मन्दिर समूह में शिवजी का
मन्दिर सर्वप्रमुख है,जिसकी ऊंचाई लगभग ११६ फुट है | खजुराहो के अतिरिक्त जोधपुर के
समीप ओसिया में भी कुछ ब्राहाण तथा जैन मन्दिर है | चित्तौड़गढ में स्थित कालिका
देवी का मन्दिर भी दर्शनीय है | उदयपुर में स्थित शिव मन्दिर का निर्माण भी राजपूत
काल में ही हुआ था | उत्तर भारत के अतिरिक्त दछीण व पूर्वी भारत में भी राजपूत युग
में अनेक मन्दिरों का निर्माण हुआ | जगन्नाथपुरी का मन्दिर उत्क्रष्ट कला का नमूना
है | कोणार्क का सूर्य मन्दिर भी दर्शनीय है | इस मन्दिर पर २०० फुट ऊँचा शिखर था
जो कि दुर्भाग्यवश अब नष्ट हो गया है | दछीण भारत में तंजौर का गंगैकोन्ड़ोचोलपुरम
का मन्दिर कला की द्र्स्टी से अत्यंत उच्चकोटि का है | राजपूत युग में निर्मित
मन्दिरों में दो प्रकार की शैलियां देखने को मिलती है | आर्य शैली जिसको उत्तर
भारतीय शैली भी कहा जाता है , के अंतर्गत मन्दिरों के शिखर वक्राकार व गोल है ,जबकि
द्रबिण शैली में शिखर आयताकार खंडो से बनाए गए हैं | इस प्रकार ये पिरामिड के समान
लगते है |
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