प्रस्तावना
भारत जैसा विकासशील रास्त्र आतंकबाद की समस्या से आज
आन्तरिक एवं बाहा दोनों रूप से प्रभावित है जिससे विकास कार्यो में बाधा धन –जन की हानि तथा अन्य कई समस्याएं पैदा हो
रही है | आतंकवाद आज भारत की सबसे बड़ी आन्त-रिक सुरक्षा चुनौती के रूप
में उभरा है | आतंकबाद वर्तमान विश्व की एक गंभीर-
तम समस्या हैं |
आतंकबाद से तात्पर्य
आतंकबाद एक ऐसी विचारधारा है , जो राजनैतिक लक्ष्य की प्राप्ति के लिए
शक्ति या अस्त्र-शस्त्र के प्रयोग में विश्वास रखती है | अस्त्र-शस्त्रो का ऐसा घ्रणित प्रयोग
प्रायः विरोधी वर्ग दल ,समुदाय या सम्प्रदाय को भयभीत करने और उस पर विजय प्राप्त
करने की द्र्स्टी से किया जाता है | अपने राजनैतिक स्वार्थो की पूर्ति के लिए
आतंकबादी गैरक़ानूनी ढग से अथवा हिंसा के माध्यम से सरकार को गिराने तथा
शासन-तन्त्र पर अथवा प्रभुत्व करने का प्रयास भी करते है |
भारत सरकार द्वारा चलाये गए अधिनियम
आतंकबाद को समाप्त करने हेतु सरकार द्वारा बिभिन्न उपाय किए
गए है | अतः इसके बाद बर्ष १९९९ में टाटा के स्थान पर एक नया
आतंकबाद निरोधक कानून (पोटा) को पारित किया गया जिनका विवरण निम्नलिखित है टाडा
भारत सरकार
ने आतंकबाद और आतंकबादी गतिविधियों से निपटने हेतु आतंकबादी एवं
विध्वं-
सक गतिविधि रोकथाम एक्ट , टाडा नाम से कानून बनाया है | पोडा ,पोडा तथा
टाडा का ही एक रूप है जिसे २५ अक्टूबर ,२००१ को लागू किया गया था | इसके अंतर्गत कुल २३ आतंकबादी और अतान्क्बदियो से सम्बंधित
सूचना को छिपने
वालो को भी दण्डित करने का प्रावधान किया गया है |
भारत में आतंकबादी गतिविधियाँ –
विगत दो द्शाबधियो में भारत के पंजाब , बिहार ,असम , बंगाल ,जम्मू –कश्मीर आदि कई प्रान्तों में आतंकबादियों ने व्यापक स्तर पर आतंकबाद
फैलाया | बिहार
के पूर्व रेलवे मन्त्री श्री ललितनारायण मिश्र , पं० दीनदयाल उपाध्याय , श्रीमती इन्दिरा गांघी , श्री राजीव गाँधी , श्री लोगोवाल , भूतपूर्व सेनाध्यक्ष श्री अरुण श्रीधर
वैध ,आदि देश के अनेक गणमान्य व्यक्तियों को आतंकबादीयों ने मौत
के घाट
उतार दिया | १९९७ को जम्मू में भीषण बम बिस्फोट में २५ लोगों की म्रत्यु
; ७
मई , १९९७ ई० को त्रिपुरा में १६ जवानों की हत्या ; १२ अगस्त ,१९९७ ई० को टी – सीरिज के मालिक गुलशन कुमार की हत्या | भारत में आतंकबाद का घ्रणित सिलसिला निरन्तर बढता ही जा रहा है |
हिंसा फ़ैलाने वाले आतंकबाद _
हिंसा के द्वारा जनमानस मे भय या आतंक पैदा कर अपने उददेशो
को पूरा करना आतंकबाद है | यह उददेश राजनीतिक, धार्मिक या आर्थिक ही नही समाजिक या अन्य
किसी भी प्रकार का हो सकता है | वैसे तो आतंकबाद के कई प्रकार है ,किन्तु इनमे से तीन ऐसे है जिनसे पूरी
दुनिया अत्यधिक त्रस्त है | ये तीन आतंकबाद है | राजनीतिक आतंकबाद ,धार्मिक कट्टरता एवं गैर –राजनीतिक या सामाजिक आतंकबाद | श्रीलंका में लिटटे समर्थको एवं
अफगानिस्तान में तालिवानी संगठनों की गतिविधियां राजनीतिक आतंकबाद के ही उदाहरण है
| अलकायदा , लश्कर –ए -तएबा , जैश –ए मोहमद जैसे संगठन घार्मिक कट्टरता की
भावना से अपराधिक क्रत्यो को अन्जाम देते है ,अतः ऐसे आतंकबाद को धार्मिक कट्टरता की
श्रेणी में रखा जाता है |
नक्सलवादी आतंकबाद –
नक्सलवादी आन्दोलन भूमिहीन श्रमिको के हितो की रक्षा करने
के लिए प्रारम्भ हुआ | नक्सलवादी जमींदारो , साहूकारों और पुलिस अधिकारियो को अपना
निशाना बनाते है | और उन्हें मार देते है | आदिवासी क्षेत्रो में निर्धनता , बेरोजगारी , अशिक्षा ,कुपोषण और अज्ञानता के कारण भी नक्सलवाद
को बढावा मिला है अथवा कुछ स्वार्थी लोग उन्हें बरगलाकर अपने साथ जोड़ने में कामयाब
रहे है | यधपि भारत सरकार ने दलितों , आदिवासियों एवं कृषक समुदाय के हितो के
संरक्षण हेतु कई कानून पारित किए है नक्सली आतंकबाद की शुरुआत बर्ष १९६७ में
पश्चिम बंग से हुई |
आतंकबाद के उददेश्य_
आतंकबादीयों के उददेश्य प्रत्येक आन्दोलन के साथ बदल सकते
है , परन्तु आतंकबाद के मुख्य उददेश्य सभी आतंकी आन्दोलनों में
एक ही होते है | उनका मूल उददेश्य भय पैदा करना होता है | शासन को प्रतिक्रिया और अति प्रतिक्रिया
दिखने के लिए प्रेरित करना |
(१) अपनी आर्थिक सुरक्षा के लिए अलग राज्य की
मांग करना |
(२) अपनी राजनीतिक महत्वाकंशाओ की पूर्ति के
लिए आतंकबाद का सहारा लेना |
(३) किसी देश को नीचा दिखाने , उसकी अर्थव्यवस्था को नष्ट करने के लिए
उस पर आतंकबादी हमले करना |
(४) किसी देश की राजनीतिक कूटनीति के कारण
हुए नुकसान का बदला लेना |
भारत में नक्सलवाद गैर –
राजनीतिक आतंकबाद का उदाहरण है | आतंकबादी हमेशा आतंकबाद फ़ैलाने के नये –नये तरीके आजमाते रहते है | भीड़ भरे स्थानों ,रेलवे , बसों इत्यादी में बम विस्फोट करना , रेलवे दुर्घटना करवाना इत्यादी , वायुयानों का अपहरण कर लेना , निर्दोष लोगो या राजनीतिक को बन्दी बना
लेना , बैंक डकैतिया करना इत्यादी कुछ ऐसी आतंकबादी गतिविधियाँ है | जिनसे पूरा विश्व पिछले कुछ दशको से
त्रस्त रहा है |
आतंकबाद के व्यावहारिक दुष्परिणाम –
आतंकबाद से अनेक प्रकार के दुष्परिणाम हो रहे है जिनमे से
कुछ प्रमुख तथ्यों का अति संक्षेप में विवरण इस प्रकार है
(१)आतंकबाद व्यापक रूप से सम्पूर्ण मानवीय सभ्यता व
मानवेचित गुणों ; जैसे दया ,सहयोग , सहानभूति , सुख व शांति को नष्ट करता है तथा आम लोगों में आतंक ही
फैलता है | लोगो के दिल में डर और असुरक्षा की भावना को पैदा करता है
जिसके फलस्वरूप लोग अपना स्वाभविक जीवन नहीं जी पाते है |
(२) आतंकबाद से देश में जान और माल की अथाह क्षति होती है | जनता व सरकार की अरबो की सम्पत्ति नष्ट
होती है और लाखो लोग मारे जाते है | इसके अतिरिक्त आतंकबाद अन्य कई रूपों में अपने दुष्परिणाम
को फैलाता है ; जैसे
सामाजिक दुष्परिणाम :-
जिसके अंतर्गत साम्प्रदायिक सदभाव
एवं राष्ट्रीय एकता को खतरा सामाजिक एवं पारिवारिक विघटन आदि आते है |
आर्थिक दुष्परिणाम :-
इसके अंतर्गत निर्धनता एवं बेरोजगारी , उधोग – धंधो का विनाश तथा आर्थिक विकास में बाधा
उत्पन्न होना आदि आते है |
राजनीतिक दुष्परिणाम :-
इसके अंतर्गत राजनीतिक व्यवस्था के प्रति जनता में अंधविश्वास की बढोतरी , अन्तराष्ट्रीय सम्बन्धो का बिगड़ना तथा
सरकारों की अस्थिरता आदि आते है |
उपसंहार :__
यह कैसी विडंबना है | की बुद्ध , गुरुनानक और महात्मा गाँधी जैसे
महापुरुषों की जन्मभूमि पिछले कुछ दशको से सबसे अधिक अशांत और हिंसात्मक हो गई है | अब तो ऐसा प्रतीत होता है | की देश के करोड़ो नागरिक ने हिंसा की
सत्ता को स्वीकारते हुए उसे अपने दैनिक जीवन का अंग मान लिया
है | भारत के बिभिन्न भागो में हो रही आतंकबादी गतिविधियों ने देश की राष्ट्रीय
एकता और अखंडता के लिए संकट उत्पन्न कर दिया है | आतंकबाद का समूल नाश ही इस समस्या का
समाधान है |
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